अंगना दुवार लीप बोहार के, डेरौठी म दिया बार के – अगोरय वोहा हरेक बछर। नाती पूछय – कोन ल अगोरथस दाई तेंहा। डोकरी दई बतइस – ते नि जानस रे, अजादी आये के बखत हमर बड़े –बड़े नेता मन केहे रिहीन, जब हमर देस अजाद हो जही, त हमर देस म लोकतंत्र आही। उही ल अगोरत हंव बाबू। नाती पूछिस – ओकर ले का होही दाई ? डोकरी दई किथे – लोकतंत्र आही न बेटा, त हमर राज होही, हमर गांव के बिकास होही। मनखे मनखे में भेद नि रही। हमर गांव के गरीबी मेटा जही, जेकर पेट म एक ठिन दाना निये, तहू खावत खावत अघा जही। जेकर करा पहिरे बर चेंदरा निये , तेहा लुगरा ओढ़ना म लदा जही। गली खोर म रथिया बितइया मनखे बर, सुघ्घर सुघ्घर घर कुरिया छवा जही। कोन्हो लड़ही – भिड़ही निही। जम्मो मनखे ल जिये के एके बरोबर अधिकार मिलही। एके बरोबर नियाव घला पाहीं जम्मो। गली गली म रमायन के चौपाई, कुरान के आयात, सबद कीरतन के गीत – संगीत सुनई दिही।
नाती पूछिस – वोला अगोरे बर, दिया बारे के काये जरूरत हे दाई ? डोकरी दई किथे – हतरे भकाड़ू, कहींच नि जानस रे। इही दिया के अंजोर म लोकतंत्र ह रसता अमरही। दिया नि बारहूं त बपरा ह कइसे जानिही, के कते गांव म समसिया हे, कतिंहा खुसरना हे, कतिहां के बिघन बाधा ल हरना हे। नाती बताये लगिस – जउनला तैं अगोरत हावस न दाई, तेहा, तोर गांव म, कभू नि आवय। डोकरी दई बिसबास ले किहीस – काबर नि आही बेटा ? हमर करांतीकारी नेता मन केहे हे ते, लबारी थोरेन होही। अभू के नेता मन कस, ओमन लबरसट्टा नि होय बाबू । देस बर जान देवइया मनखे मन थोरेन लबारी मारही – तुंहर गांव म लोकतंत्र आही कहिके। बड़ बिसवास रहय वोला। कोन्हो बछर नि छूटे, डोकरी दाई हरेक छब्बीस जनवरी के, लोकतंत्र ल अगोरत अपन डेरौठी म दिया बारके, बइठे रतिस। ओकर नाती ओला रंग रंग के समझाये, फेर वोहा गांठ बांध डरे रहय, के छब्बीस जनवरी आही तहंले, लोकतंत्र आही, हमन राज करबोन, हमर भुंइया के भाग जागही।
डोकरी दई ल फेर चुलकइस, नाती हा – दाई, तेंहा बिसवास नि करस या। दिल्ली म उही दिन ले आगे हे लोकतंत्र ह, फेर इहां आये के नाव नि लेवत हे। डोकरी दई मुहुं ला फार दिस – का ? दिल्ली म आगे हे, उही समे ले। देखे बाबू, में केहे रेहेंव न, हमर करांतीकारी मन लबारी नि मारय। “ फेर इहां काबर नि हमाथे वोहा “ - डोकरी दाई सोंचे लागिस। कोन्हों लोकतंत्र ल ओकर गांव म आये बर छेंकथे का ? तभे लोकतंत्र ओकर गांव कोती, निहारत निये। हमर दिया के अंजोर कमती हो जथे का ? तेकर सेती ओला दिखय निही। उही दिन ले, गली गली म अतका कस दिया जलाये के उदिम सुरू कर दीस, के जगमग दिया के अंजोर म, लोकतंत्र ला रसदा दिख जाय। अभू सुरहुत्ती कस दिया बरे लागिस चारो मुड़ा। मने मन बुड़बुडाय लगिस – अब कइसे नि दिखही रे लोकतंत्र, मोर गांव के रद्दा ह तोला। फेर नि अइस लोकतंत्र। नहाक गे वहू बछर। नाती फेर चुट ले कहि दीस – लोकतंत्र अंधरा हे दाई, तेंहा कतको कस दिया बार, ओला काये फरक परही। दई किथे – हत रे बैरी ……..। पहिली नि बताये रहिते, अंधरा हे लोकतंत्र कहिके, काबर जगजग ले दिया बार के अगोरतेंन। जाथंव दिल्ली, देखहूं, कइसना हे – करिया हे के, गोरिया हे लोकतंत्र तेला। गांव आये बर , नरियर पान सुपारी धरके मनाहूं, लानत बनही त लानहूं, निच मानही त डेना ल हचकार के धरहूं, ईंचत लानहूं। दई चल दिस दिल्ली, लंक कस टूटत……। न पता जानय न ठिकाना, कोन ल अउ कइसे पूछय। सुरता अइस, उंखर नेता रिथे इहां, उही जानत हे लोकतंत्र ल, उही मिलवाही मोला। पहुंचगे नेता तिर, ह ह ……. .बड़ हांसिस नेता। नेता सोंचिस, अतका दूरिहा ले आहे ममादाई, एकर मांग पूरा करे लागही। “ इही लोकतंत्र हरे कहिके ” भेंट करा दीस, एक झिन ले। डोकरी दाई ओकर दरसन करके, बड़ खुस रिहीस। बड़ सुंदर रहय ओहा …….। दग दग ले सफेद, सुंदर बाजर कपड़ा लत्ता पहिरे ओढ़े बइठे रहय। दाई सोंचत हे “ लोकतंत्र के आंखी निये, अंधरा हे ओहा “ – कहिके, नाती टूरा, कइसे लबारी मारिस तेला। लेकतंत्र के तीर म, जाये के पहिली, अपन देहें म, महर महर सेंट ल, गदगद ले रिको डरिस। दई सोंचत रहय, ममहाहूं, तंहले मोरे कोती आघू देखही, तहन गोठियाहूं अऊ अपन गांव आये के नेवता दूहूं …….। जइसे गिस तीर म, तइसे लोकतंत्र उठे लागिस, दाई गोठियातेच हे, वोहा दूसर डहर, अपन थोथना ल टेकाये मुचुर मुचुर करत, टुंग ले उठिस, डोकरी दाई ल धकियावत, कते कोती मसक दिस। हबरस ले उलंडगे, डोकरी दाई। डोकरी दई अपन नाती के सुरता करत हे – तेंहां सिरतोन केहे रेहे का रे। येहा फकत अंधराच नोहे, भैरा अऊ नकटा घला आय कस लागथे। भैरा हे तभे – सुनिस निही मोर एको गोठ, अऊ बिन नाक के घला हे, अतका कस सेंट म एको कनिक ओकर नाक म नि खुसरिस। अपन कस मुहूं करे लहुंट दिस।
वापिस लहुटतेच साठ, बड़ गारी बखाना करीस, डोकरी दाई। मोर अतका बछर के तपसिया भोसा गे। में जाने रहितेंव अइसने रिथे लोकतंत्र, ते कभू ओकर रद्दा नि जोहतेंव। नाती बड़ हांसिस अऊ बतइस – तेंहा जेकर तीर गे रेहे न दाई, तेहा लोकतंत्र नोहे। अभू तें देखे कहां हस लोकतंत्र ल। वोहा कन्हो मनखे थोरे आय दाई। डोकरी दई किथे – अई ……. मेंहा मनखे हरे लोकतंत्र ह, कहत रेहेंव बेटा। दाई के भरोसा फेर जागगे। मने मन, गारी बखाना के सेती, पछतावत रहय। अपन कलपना के लोकतंत्र ल, देवता समझे अभू घला, अऊ कहय – मोर लोकतंत्र ल आवन दव, तंहले बताहूं रे तूमन ल, मोला धकिया हस तेकर भुगतना ल भुगता के रहूं।
समे नहाक गे। डोकरी दाई निच्चट सियान होगे। बिमार परगे। “ तैं कब आबे लोकतंत्र मोर गांव म “ – खटिया म पचत रहय, फेर उइसनेच रटय दिन भर। पान परसाद खवा डरीन। बेटा मन किहीन – राम राम बोल दाई, राम राम। फेर ओकर मुहूं ले कहां निकलय, राम नाम के गोठ, ओकर मुहूं म फकत, लोकतंत्र बसे रहय, उहीच ल रटय। बुड़बुड़ावय – तैं आते, मोर जान बचाते, महू ल कुरसी म बइठारते, मोर गांव के भाग जगाते …….। गीता के इसलोक सुनत, डोकरी दाई, खटिया म, उदुप ले, उठ के बइठ गे। जम्मो झिन सुकुरदुम होगे, दाई कइसे करथे ? जोर जोर से केहे लगिस दई – अभू तोला फुरसुत मिलिस लोकतंत्र, मोर गांव म आये के। मोर जाये के पहरो म आये तें। में काला देखहूं। पहिली आते त, महूं थोरकुन तोर मजा ले लेतेंव। तोर संग हांस लेतेंव, गोठिया लेतेंव, ददरिया गातेंव, झूम लेतेंव, नाच लेतेंव। मोर गांव के चिखला रद्दा म डामर के रंग चढ़ जतिस, मोर लइका बालामन बर इसकूल खुल जतिस। मोर पारा म कुआं खना जतिस, मोर गांव के तरिया – नदिया के दिन लहुंट जतिस। मोर नाव के रासन कारड बन जतिस। मोर धान के किम्मत अऊ मोर मेहनत के इज्जत बाढ़ जतिस। मोर गांव म मंदीर बन जतिस, मज्जिद के अजान सुन लेतेंव ……..।
नाती सोंचिस – दाई पगला गेहे लोकतंत्र के पाछू। जावत समे, एकर भरम ल टोरना हे, लोकतंत्र के असलियत ल बताना हे, तभे येहा जाये के बेरा, राम राम बोलही। नाती केहे लागिस – तेंहा दिल्ली गे रेहे न दाई, त जेन मनखे ले तोर भेंट होये रिहीस, तउने लोकतंत्र आये दाई। तोर भरोसा झिन टूटे कहिके, तोर करा झूठ बोलेंव। वोहा सहीच म अंधरा, कनवा अऊ नकटा आये। इही लोकतंत्र के सेती, तोर गांव म पक्का सड़क, नाली, इसकूल नि बन सकिस। भसकहा कुआं बनइया, बिन सरोत के तरिया खनवइया, नदिया म फुटहा भोंगरा पार बनवइया, तोला मुखिया बना – रासन कारड बना के तोला मुरूख बनइया, तोर धान कस तोर मेहनत के किस्मत बिगड़इया, तोर देस के सफ्फा नुकसान करइया इही लोकतंत्र आये दाई। ये लोकतंत्र गरीब बर नोहे दाई, तैं फोकट ओकर अगोरा करत रेहे। जे लोकतंत्र के सपना, सतनतरता सेनानी मन, तोला देखाये रिहीन, वोला जनम लेतेच साठ, बइरी मन मुसेट के, मार डरे रिहीस। ये अमीर मन के लोकतंत्र आय दाई। तभे, झाड़ू कका, अजादी के अतका बछर पाछू, धान के कटोरा धरे दाना दाना बर लुलवावत हे। कपड़ा बिनइया, चैती काकी के लइका, नंगरा घूमत हे गली खोर म। दूसर बर घर बनइया खोरबाहरा, रामबाड़ा के परसार म सुते बर मजबूर हे। अऊ तेंहा समझथस – येहा तोर इलाज करवातिस कहिके। इही लोकतंत्र के इलाज म, हमर बबा के आंखी फूटे रिहीस। तोर बेटी के, कोख हरागे रिहीस। इही लोकतंत्र के सेती, तोर गांव के बांधा फूट गे रिहीस, कतको एक्कड़ फसल बोहागे रिहीस। अऊ ऐकरेच सेती तोर जगा भुइंया म बने बांध के मुअउजा, अभू तक नि मिलीस तोला। सिरीफ ऐकरेच सेती माचिस के काड़ी चोराये के इलजाम म, तोर ममा जेल गे रिहीस, अऊ पूरा गांव के विकास के पइसा हजम करइया सरपंच, अभू बिधायक अऊ मंत्री बन के भुकर भुकर के खावत, किंजरत हे। ये लोकतंत्र तोर देस ल बेंचत हे दाई। बने करीस तोर तीर म नि ओधीस, निही ते तहूं ल बेंच देतीस, तहन हमन “ डोकरी दाई “ कोन ल कतेन। तेंहा ये लोकतंत्र के मोहो ल छोड़, अभू जाये के बेरा आगे, राम – राम बोल दाई राम – राम। जइसे दाई ल हलइस, दाई ल नि पईस। दाई के जीव, कोन जनी कतेक बेर उड़ियागे। डोकरी दाई चल दिस। अइसने कतको झिन, जावत जावत अमरावत हे लोकतंत्र ला। जियत जियत पाये के आसा म, हमेसा धोका खावत हे। फेर, दिया बार के, मिले के आस म, अभू तक अगोरत हे, गांव हा, अपन सपना अऊ कलपना के लोकतंत्र ल।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा
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